: send direct message to facebook :

2012 में परिसीमन के बाद सूरत शहर की सीटों का सीधे-सीधे फायदा भाजपा को हुआ है। इससे पहले भी तीन विधानसभा चुनावों में जिले का वोटर भाजपा के साथ ही रहा है। भाजपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन 2012 में रहा है, जब उसने यहां की 16 में से 15 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस के खाते में एक मात्र सीट मांडवी की सुरक्षित सीट गई थी। वोट प्रतिशत में देखें तो भाजपा को सबसे ज्यादा 56.68 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस को भी पिछले दो चुनाव के मुकाबले 35.02 प्रतिशत वोट मिले।
माना जाता है कि परिसीमन के बाद कांग्रेस को खासा नुकसान हुआ था, क्योंकि ग्रामीण सीटों का चुनावी गणित बिगड़ गया। इससे थोड़ा पीछे 2007 के चुनाव का परिणाम देखें तो 9 सीट में से भाजपा को 7 सीटें मिली थी, जबकि कांग्रेस को महुआ और बारडोली की सुरक्षित सीट पर सफलता मिली थी। वोट प्रतिशत में भी भाजपा को 51.71 प्रतिशत वोटरों का साथ मिला, जबकि कांग्रेस को 28.93 प्रतिशत मत मिले। 2002 की बात करें तो यह मोदी युग की शुरुआत थी।
इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 127 सीट जीती थी, जो पार्टी का अब तक का सर्वाधिक उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा है। बावजूद इसके सूरत जिले में भाजपा को 2012 के मुकाबले कम वोट मिले थे। इस बार 51.71 प्रतिशत वोटरों का साथ मिला, जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन भी खराब रहा था और उसे सिर्फ 28.93 प्रतिशत मत मिले। शहरी वोटर पिछले तीन चुनाव से भाजपा के साथ रहे हैं। इस बार जबकि राजनीतिक तौर पर नोटबंदी और जीएसटी का प्रभाव चुनावों पर पड़ने की आशंका जताई जा रही है, ऐसे में शहरी वाेटर भाजपा का साथ कितना निभाता है यह देखने वाली बात होगी।

जीएसटी और नोटबंदी का विरोध कितना रहेगा असरकारक
सूरत जिले की विधानसभा सीटों में सबसे ज्यादा 12 सीटें शहर में हैं। जो भाजपा के पास है, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद परिस्थितियों में काफी बदलाव आया है। व्यापारी वर्ग काफी नाराज है। आमतौर पर भाजपा वोटर माने जाने वाला यह वोटर इस बार भाजपा के साथ रहता है या नहीं यह देखने लायक होगा। वहीं नोट बंदी की वजह से आम शहरी और व्यापारियों को खासी मुश्किल हुई।
विशेषतौर पर आयकर विभाग द्वारा जिस तरह व्यापारियों को परेशान किया गया है उससे भी गहरी नाराजगी है। चुनाव विश्लेषकों का कहना है कि पिछले महानगर पालिका चुनाव में भी भाजपा को नुकसान हुआ था। ऐसे में जीएसटी, नोटबंदी की मार तो और ज्यादा नुकसानदेय होगी भाजपा के लिए। यहां कांग्रेस को एक अवसर हो सकता है, जब वह इनकी नाराजगी का लाभ ले सके।
हिंदीभाषियों काे टिकट नहीं मिला तो हो सकता है नुकसान
सूरत शहर में लगभग पांच से आठ लाख आबादी हिंदीभाषी वोटर हैं। भाजपा ने यहां से अब तक किसी भी हिंदीभाषी को अपना उम्मीदवार नहीं बनाया है, जबकि कांग्रेस पिछले विधानसभा में दो सीटों पर हिंदीभाषियों को टिकट दिया था और इस बार भी उम्मीद है कि वह दो सीटों पर उम्मीदवार बना सकती है। भाजपा से जो जानकारी मिल रही है इस बार भी शायद ही हिंदीभाषियों को टिकट दे, लेकिन इस बार हिंदीभाषी मजबूती से अपनी दावेदार कर रहे हैं। हिंदीभाषियों का दावा है कि अगर इस बार उन्हें प्रतिनिधित्व का मौका नहीं मिला तो वे भाजपा के खिलाफ भी जा सकते हैं जो अब भाजपा के साथ रहे हैं। विशेषतौर पर मजूरा, चौर्यासी और उधना सीट पर हिंदीभाषियों की दावेदारी है।
जिला पंचायत और निकाय में कांग्रेस को हुआ था फायदा
विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के बाद 2015 में हुए जिला पंचायत और नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस को अच्छे मत मिले थे। जिला पंचायत सीट पर पिछले चुनाव के मुकाबले मत प्रतिशत में खासी बढ़त देखने को मिला था, जबकि महानगर पालिका चुनाव में कांग्रेस ने अपने मत प्रतिशत और सीट में बढ़ोतरी की थी। अगर इसको मतदाताओं के बदले हुए मत को माने तो इसका फायदा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है। ऊपर से जीएसटी, नोट बंदी और पाटीदार आंदोलन ने कांग्रेस की राह आसान कर दी है। 2010 में कांग्रेस के पास मनपा मे केवल 14 सीट थी। 2015 के चुनाव में कांग्रेस ने कुल 36 सीटें जीती। 2010 की तुलना में कांग्रेस को 22 सीट का लाभ हुआ। पाटीदार फेक्टर ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
पाटीदार बहुल सीटों पर दोनों पार्टियों की है निगाह
भाजपा का सबसे मजबूत वोटर पाटीदार इस बार नाराज चल रहा है। शहर की कतारगाम , करंज, वराछा और कामरेज पूरी तरह पाटीदार बहुल सीट है। इन सीटों पर पिछले चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले लगभग दोगुने वोट मिले थे। करंज में तो 70.51 प्रतिशत वोटरों ने भाजपा के पक्ष में वोट दिए थे। लेकिन पाटीदार आंदोलन के बाद परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया है। आंदोलन का प्रमुख गढ़ रहे सूरत में इस बार इसका व्यापक असर पड़ सकता है। अगर पाटीदारों ने भाजपा के खिलाफ वोट किया तो इसका सीधा असर सीटों पर पड़ सकता है। बहरहाल कांग्रेस और भाजपा दोनों हार्दिक पटेल और पाटीदारों को रिझाने में लगे हुए हैं। लेकिन हार्दिक दोनों से बार्गेनिंग में लगे हुए हैं। कुल मिलाकर भाजपा भी पाटीदार वोटरों को लेकर चिंतित है और कांग्रेस आशावादी।
मतदान प्रतिशत :दो पार्टियाें के बीच ही होती रही है चुनावी जंग, तीसरा दल नहीं डाल पाया विशेष प्रभाव
नोट :-कोष्ठक के आंकड़े मतदान प्रतिशत, परिसीमन के बाद नवसारी व तापी जिले में गई सीटों का विवरण नहीं।
- 2012 में मजूरा विस सीट से भाजपा के हर्ष संघवी ने सबसे ज्यादा मतों से चुनाव में जीत दर्ज की थी।
- वर्ष 2002 में भाजपा ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था, प्रदेशभर में 127 जीतकर बनी थी सबसे बड़ी पार्टी

Post a Comment

 
Top
Aapanu Gujarat